चाह नही मुझे ऐसी भेंट का, जब राहों में मैं फेंका जाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ ईनाम पुरष्कारों की नही चाह, जब नहीं मिले तो दुःख पाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ चाह मुझे उन अच्छे ईंषानों का, जिनके दिल मैं बस जाऊं । चाह मुझे उन सत्य पथिक का, जिनके चरणों में मैं चढ़ जाऊं ॥ चाह मुझे उन हवाओं का, जब मैं खुशबू उनके संग बिखराऊ । चाह मुझे भगवान के चरणों का, जहां हसते हसते मैं चढ़ जाऊं ॥ मोहन श्रीवास्तव (कवि)
Sunday, 1 October 2023
(शार्दूल विक्रीडित छंद)जय दुर्गे मां "देवी स्तुति"
Wednesday, 6 September 2023
"कलाधर छंद"(श्रीकृष्ण जन्म)अर्ध रात्रि भाद्र मास
Monday, 4 September 2023
आदि गुरू शंकराचार्य जी द्वारा रचित "गुरु अष्टकम" का भावानुवाद
आदि गुरू शंकराचार्य जी द्वारा रचित
"गुरु अष्टकम" का भावानुवाद
"महाभुजंग प्रयात सवैया"
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भले आपका गात हो रम्य चारू, प्रिया आपकी भी ललामा लगे है।
यशोकीर्ति चारों दिशा में बढ़े या, धनानादिकें मेरु जैसे पगे हैं।
सभी हो प्रिया पुत्र पौत्रादि द्रव्या, स्वसा भ्रातृ या गेह सारे सगे हैं।
हिया में न आचार्य के पांव पूजेँ , सभी व्यर्थ जानो सभी व्यर्थ जानो।।1।।
सभी वेद वेदांग जिह्वाग्र पे हों, रचें श्रेष्ठ काव्यादि गद्यादि को हैं।
मिले देश देशांतरों में प्रतिष्ठा ,चलें वें सदाचार के मार्ग पे हैं।।
यशोगान होता रहे नित्य चाहे, करें मान सम्राट आ व्यक्ति द्वारे।
हिया में न आचार्य के पांव पूजेँ , सभी व्यर्थ जानो सभी व्यर्थ जानो।।2।।
भलाई तथा दान जो भी करूं मैं, यशोकीर्ति हो व्याप्त चारों दिशाएं ।
सभी वस्तुएं लोक की जो गुणी हैं, सदा हाथ मेरे सभी वो सुहाएं।।
प्रिया हो ललामा धनानादि या हो, सभी वस्तुओं से हटे ध्यान मेरा।
हिया में न आचार्य के पांव पूजेँ , सभी व्यर्थ जानो सभी व्यर्थ जानो।।3।।
सभी ध्यान पूजा मिले सिद्धि सारे , विरागी बनूं मैं नहीं ये लुभाएं।
तजूं मोह शाला अरण्यादि का मैं, परे मैं रहूं दूर ना ये रिझाएं।।
स्वतः कामना नष्ट सारे हमारे, सभी व्यर्थ हैं ये बिना ये गुरू के।
हिया में न आचार्य के पांव पूजेँ , सभी व्यर्थ जानो सभी व्यर्थ जानो।।4।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
दरबार मोखली, पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़
14.04.2023