मन तो तुम्हारी आखें हैं !
मुस्कान तुम्हारी सुबह तो है,
संगीत तुम्हारी बातें हैं !!
दुख तो काली रात तुम्हारी,
सुख तो दिन के उजाले हैं !
चांदनी रात श्रृंगार तुम्हारी,
कैसी गुलाबी गाले हैं !!
छुई-मुई सा तन है तुम्हारा,
भौहें तो दुईज की चांद सी हैं !
मोती जैसे दांत तुम्हारे,
तेरी मांग तो नदिया की धार सी है !!
फ़ूलों जैसे खुशुबू तुम्हारा,
परछाई छावों जैसा है !
नागिन जैसी चाल तुम्हारी,
ज़ुल्फ़ें रेशम जैसा है !!
रूप तुम्हारा संगमर्मर है,
दिल तो शिशे जैसा है !
दिन और रात के बीच के पल मे,
मिलना संध्या जैसा है !!
हसती हो जब बारिस होती,
रोती हो तो धूप है !
परी हो तुम नील गगन की,
तेरे तो कई रूप हैं !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
२०/७/१९९९,सुबह ११ बजे, चन्द्रपुर महा.
2 comments:
Wah wah! Bahut badiya! Very romantic!
अमित हेरेलकर जी,
आपका दिल से आभार
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