Tuesday 16 July 2013

"ऐसे उद्गार हमारे नेताओं के"

तुम्ही मेरे मालिक हो प्रियवर,
सखा , मित्र सब तुम ही हो
मेरे प्राणनाथ परमेश्वर तुम,
मेरे पूरण  काम तुम ही हो

सडकें बनवा देंगे, घरों तक हम,
नालियां शीघ्र खुदवायेंगे
बिजली-पानी का उचित प्रबन्ध,
हम भुमि को उपजाऊ बनायेंगे

रोजगार मुहैया सब को होंगे,
जन-जन मे शिक्षा का जगरण होगा
भ्रष्टाचार मिटायेंगे हम,
और सब को आने जाने का साधन होगा

रहने के लिये सब को घर होंगे,
मंहगाई से हम तुम्हे उबारेंगे
इस बार यदि जीत गये तो,
हम तुम्हे खुशियों से नहलायेंगे

ऐसे उद्गार  हमारे नेताओं के,
अब गली-गली मे गूजेंगे
मिठी बोली बोल के वो,
हमारे वोटों को लूटेंगे
मिठी बोली बोल के वो,
हमारे वोटों को लूटेंगे

कवि मोहन श्रीवास्तव
http://kavyapushpanjali.blogspot.com/2013/07/blog-post_16.html

13-08-1999,friday,8.30pm,
chandrapur,maharashtra.



2 comments:

Ranjana verma said...

आजकल के नेताओं की यही नियत हो गयी है सिर्फ वोट लेने से सरोकार है उनके काम से नहीं...
अच्छी अभिव्यक्ति .......!!

Mohan Srivastav poet said...

रंजना जी,आप का दिल से आभार