Friday 21 July 2023

बरसा ऋतु आय गई जब से

(दुर्मिल सवैया)

"बरसा  रितु आय गई जब से"


बरसा रितु आय गई जब से ,जुबती जइसे मुसकाय धरा | 

बुँदे जिमि पायल सी छनके , चहुँ ओर उड़ाय रहे बदरा  || 

मदमस्त हुए सब जीव महा , धरती लहराय रही अंँचरा  | 

नवअंकुर फूट रहे थल में,  सब दादुर  देवत हैं  पहरा  || १|| 


मिल ताल - तलाइ  रहे अब तो  , सरिता जल  सिंधु समाय रही | 

नभ प्यास बुझाय रहा वसुधा , तरु से लतिका लिपटाय रही || 

बगियांँ अब मोर भी नाचि रहे , अरु कोयल गीत सुनाय  रही | 

जिनके पिय हैं  परदेश बसे , बिरही मन में  अकुलाय रही || २|| 


कृषिराज चले अब  खेत सभी , जन ग्वालन धेनु चराय रहे | 

सखियाँ सब धान लगावत हैं  ,  बगुले नित ध्यान लगाय रहे  || 

चहु ओर धरा अब होय हरी, रविराज लुकाय छिपाय रहे | 

जब मध्यम तेज बयार चले , तरु शाख हिलाय डुलाय रहे || ३|| 


बदरा मिरदंग बजावत हैं ,  नभ में बिजुरी चमकाय रहे | 

छपरी जिनकी  अब टूट रही , धरिके सिर ओ बिलखाय रहे || 

बरसे जबहीं दिन मेघ घने , बस बैठि सभी बतलाय रहे | 

सब खाय  रहे भजिया - गुँझिया , सजना सजनी इतराय रहे || ४ || 


कवि मोहन श्रीवास्तव

http://kavyapushpanjali.blogspot.com/2018/07/blog-post_22.html


रचना क्रमांक ;-1083 

22 / 07 /2018 , durg .c.g 




 

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