"माँ की ममता"
(विजात छंद)
छिपा लूँ लाल आँचल में, नज़र तुमको न लग जाए।
सुलाऊँ गोद में तुमको, मुझे भी चैन मिल जाए।।
गया है दूर मुझसे तूँ, तुझे नित याद करती हूं।
करूँ जब याद वचपन की, नयन में अश्रु भरती हूँ।।
खिलौना था कभी मेरा, तुम्हारे साथ मैं खेलूँ।
तुम्हारी तोतली बातें, सभी हँसते हुए झेलूँ।।
बुलाऊँ दूर भागे तूँ, खिलाऊँ तो नहीं खाए।
सुलाऊँ गोद में तुमको, मुझे भी चैन मिल जाए।।1।।
लिटाती शुष्क बिस्तर पर, कभी नम तूँ जिसे करता।
लगाती वक्ष से तुझको, कभी जब लाल था डरता।।
पकड़कर हाथ की उँगली, तुझे लल्ला चलाती थी।
करे अच्छी पढ़ाई तूँ, समय से मैं जगाती थी।।
जहां भी तूँ रहे प्यारे, सदा आशीष तूँ पाए।
सुलाऊँ गोद में तुमको, मुझे भी चैन मिल जाए।।2।।
छिपा लूँ लाल आँचल में, नज़र तुमको न लग जाए।
सुलाऊँ गोद में तुमको, मुझे भी चैन मिल जाए।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
13.12.2022
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