Thursday, 6 March 2025

"महान् तीर्थराज भूमि सर्वदा प्रणम्य है"

छंद:- पञ्चचामर 

"महान् तीर्थराज भूमि सर्वदा प्रणम्य है"


प्रयाग राज तीर्थराज तीर्थ में महान् है।

कलिंदपुत्रि गंग शारदे मिलें प्रमाण है।।

कपिश्वराय लेट के सभी को दर्श दे रहे।

समस्त पाप लोग के सुधांशु नीर में बहे।।

वटेषु वृक्ष आदि वृक्ष दिव्य दर्श दे रहे।

महात्म्य को ऋषी मुनी पुराण वेद हैं कहें।।

भारद्वाज की कुटी सदा ही विद्यमान है।

निषादराज राम मेल को कहे पुराण है।।

उतार भक्त केवटा विनम्र भाव ढंग से।

निषादराज भ्रात संग राम सीय गंग से।।

पुनीत पावनी धरा त्रिलोक में प्रसिद्ध है।

त्रिवेणि नीर सोम के समान दिव्य शुद्ध है।।

प्रयाग में निवास जो करें सदैव धन्य हैं।

महान् तीर्थराज भूमि सर्वदा प्रणम्य है।।

अनेक दिव्य जीव तीर्थ में निवास हैं करें।

विभिन्न रूप धार के सदैव मोद में भरें।।

पवित्र कुम्भ दीर्घ कुम्भ बार बार है लगे।

त्रिवेणि में नहान से समस्त पाप हैं भगे।।

अनेक साधु सन्त देव नाग का जमावड़ा।

मनुष्य खेचरादि आदि दीन या धनी बड़ा।।

सनातनी वहां जुटें भुला सभी विभेद को।

न जाति पात ऊंच नीच छोट दीर्घ भेद हो।।

अनेक शंभु भक्त भांति भांति के वहां जुटें।

नमः शिवाय नाम जाप बार बार हैं रटें।।

प्रघोर ठंड में अनेक वस्त्रहीन ही रहें।

भभूत गात धूनिका रमाय वेद को कहें।।

अनेक सिद्ध साधु सन्त राम की कथा कहें।

सुभक्त ध्यानमग्न ज्ञान के प्रवाह में बहें।।

पुनीत माघ मास में त्रिवेणि स्नान को करें।

अनेक कल्पवाश लोग योग मोद में भरें।।

समस्त तीर्थ में सदैव वेदमन्त्र गूंजते।

विहंग के समान लोग यत्र तत्र कूजते।।

प्रयाग के महात्म्य का न हो सके बखान है।

प्रणाम बार बार है प्रणाम बार बार है।।

प्रणाम बार बार है प्रणाम बार बार है।।

कवि मोहन श्रीवास्तव 

२६.०३.२०१४

महुदा, झीट अम्लेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़ 














Monday, 13 May 2024

भोजपुरी (मोर संवरिया मोर बतिया........)

सुनत नाही हो सुनत नाही
मोर संवरिया मोर बतिया सुनत नाही.......२
सुनत नाही हो............

दिल की जब बतिया उनसे करीला..२
हथवा के जोड़ दुनउ बिनती करीला........२
कवनउ जतनिया...२ चलत नाही
मोर सवरिया मोर..........

होत सबेरवां घरवा से जइतन..२
आधि-आधि रतियां....२, घर नही अउतन...२
मोरि कदरिया......२ करत नाही..........
मोर सवरिया मोर..........

अब त जनम भर उनही कर रहबइ..........२
दिल मे त पियवा क मूरत बसइबइ.........२
कवनउ गलनिया.....२, करब नाही......२ 

मोर संवरिया मोर बतिया सुनत नाही.......२
सुनत नाही हो............२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
03-10-1999,sunday,1.30pm,
chandrapur,maharashtra.

Tuesday, 2 April 2024

हाय रे घोटालेबाज

"हाय रे घोटालेबाज"
हाय रे घोटालेबाज, दारू वारू के दलाल,
आखिर में पहुंच गया तू तो तिहाड़ में।
बड़ी बड़ी कर बात, देश से तू किया घात ,
भ्रष्टाचारी देशद्रोही अब जा तू भाड़ में।
मिटायेंगे भ्रष्टाचार, बोल बोल के गद्दार,
पर तूं भी जाके मिला, चोरों की कबाड़ में।
गड़बड़ झालावाला वाला , बन गया दारू वाला,
देश द्रोह करता था, नेता गिरी आड़ में।।

फट गया तेरा ढोल, खुल गई सारी पोल,
बच्चा बच्चा जान गया तेरे इस खेल को।
तेरे साथ मिले और, कई बड़े बड़े चोर,
तेरे आगे पीछे सब जा रहे हैं जेल को।।
तूं तो ना किसी का सगा, सब को है तूने ठगा ,
मुफतखोरी की दौड़ा रहा था तू रेल को।
सब लोग जान गए, तुझे पहचान गए,
तिल तिल तरसेगा अब तू तो बेल को ।।
मोहन श्रीवास्तव
02.04.2024, मंगलवार
महुदा झीट पाटन दुर्ग



Monday, 1 April 2024

काला बाल


बुड्ढा पन करो बाय, जब है हेयर डाई,
फटाफट बूढ़ों को जवान ये बनाता है।
सत्तर को साठ कर, साठ को पचास कर,
उम्र दस बीस साल सब का छिपाता है।।
बाल को काला करके , मारके बुढ़ापा गोली
आईने के सामने खड़े हो इतराता है।
होते जब काले बाल, दिल होता खुशहाल,
चेहरे का भाव व प्रभाव बढ़ जाता है।।

जब पके मेरे बाल, देवी जी का सूजा गाल,
बोली जाके आज बाल काले करवाइए।।
करूंगी न बात चीत , भूल जाना सब प्रीत,
और कोई काम धाम मुझे ना बताइए ।
मेरे साथ घूमने को जाना है जो आपको तो
जाइए जी जाइए बहाने न बनाइए।
बोली मैं तो जानती हूं आप की सच्चाई सब,
बूढ़े हो रहे हो ये न जग को जनाइए।।

देवी जी की बात मांन, गया नाई की दुकान,
बोला  मुझे कर दो जवान लीप पोत कर l।
मुस्काते हुए मुझे नाई बोला बैठ जाओ,
कुर्सी पे बैठा मैं भी दांत को निपोरकर।।
दांत जो निपोरा मैंने वो भी मेरा नकली था,
आ गया बाहर साला मुंह से निकलकर।
नाई हैरान हुआ मैं भी परेशान हुआ,
बात सुलटाया मैने कैसे भी संभलकर।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
महुदा झीट पाटन
01.04.2024

Sunday, 24 March 2024

होली खेलैं बनवारी बिरज में २

होली खेलैं बनवारी बिरज में २
उठि के बिहनियां धूम मचावें
पू पू करके पूप बजावें
लेके कनक पिचकारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।१।।

तन पीताम्बर कटि में करधन
पग में घुंघरू बजत छनन छन
नंद बबा के दुआरी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।२।।

भरि पिचकारी ग्वारन आए
कान्हा को सब रंग लगाए
करते हुड़दंग वो भारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।३।।

ढोलक झांझ मृदंगा बाजे
घूंघट ओढ़ि गुआरिन लाजे
देवत गीत में गारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।४।।

रंग गुलाल अबीर उड़ाएं
इक दूजे को रंग लगाएं
रंग गये आज मुरारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।५।।

होली खेलैं बनवारी बिरज में २

शुभ होली (कुंडलियां)

होली की शुभकामना, आप सभी को मीत।
वैर भाव सब दूर कर, गले लगो धर प्रीत।।
गले लगो धर प्रीत, अबीर गुलाल लगाओ।
हिंसा ईर्ष्या द्वेष, सभी मिल दूर भगाओ।।
खाओ गुझिया भांग, माथ पे चन्दन रोली।
मोहन कहता आज, आप सब को शुभ होली।।

Monday, 18 March 2024

"राधा कृष्ण की होली" दोहे

"राधा कृष्ण की होली"


राधा जी मकरंद हैं, लूटें कृष्ण पराग।
लिपट लिपट कर खेलते, यमुना तीरे फाग।।


श्याम रंग में डूबते, राधा के सब अंग।
गोरी राधा से हुए, मोहन मस्त मलंग।।


बरसाने टोली चली, खेलन होली आज।
ग्वालबाल संग श्याम लखि, राधा आवे लाज।।


मोहन पिचकारी लिए, जाते राधा पास।
भागी जाएं राधिका, मन में है उल्लास।।


लिन्ह पकड़ हैं राधिका, श्याम कसे भुजबंध।
लट कपोल रगड़ें किसन, करें बहुत हुड़दंग।।


कटि बांधे पीताम्बरी, कसे वेणु निज श्याम।
मोर पंख है सीस पर , लगते सुख के धाम।।


श्याम प्रीत के रंग में, राधा जाए डूब।
इक दूजे पे रंग से, होली खेलें खूब।।


पिचकारी की मार से, राधा हुईं बेहाल।
पाकर मोहन प्रेम को, हो गइ मालामाल।।


भीगी चूनर राधिका, पीताम्बर घनश्याम।
रंगों की बौछार से, यमुना हुई ललाम।।


जमुना जल में धो रहे, दोनों अपना रंग।
मोहन राधा रंग से, जमुन हुई सतरंग।।


होली के सब रंग को , धोएं राधा श्याम।
मोद युक्त यमुना हुई, छवि निरखत अभिराम।।


होली की शुभकामना, आप सभी को मीत।
सतरंगी जीवन रहे, बढ़े सभी में प्रीत।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
12.03.2023
Mahuda,jheet,patan durg Chhattisgarh
1367

Wednesday, 13 March 2024

वो जाके बसे परदेश

अपने जीवन कुछ शेष।

वो जाके बसे परदेश।।


जनमें बेटा-बेटी थे  जब,

हर्षित बापू माई।

चाचा चाची नाना नानी,

दादा दादी ताई।।

थी खुशियां बडी विशेष।

वो जाके बसे परदेश।।१।।

अपने जीवन कुछ शेष।


हमने जैसे तैसे जीकर,

उनको खूब पढ़ाया।

उनकी सुख सुविधा के खातिर,

अपना मान घटाया।।

उन्हें ना हो दुःख लव लेश।

वो जाके बसे परदेश।।२।।

अपने जीवन कुछ शेष।


पढ़ लिख कर जब योग्य हुए तो,

अपना व्याह रचाए।

दूर देश में जाकर के वे,

अपना गेह बसाए।।

लें मोबाइल सन्देश।

वो जाके बसे परदेश।।३।।

अपने जीवन कुछ शेष।


क्या क्या सोचे थे हम दोनों,

देखे थे सुख सपने।

अपना दुःख किसको बतलाएं,

छोड़ गए जब अपने।।

दिल में दिन रात कलेश।

वो जाके बसे परदेश।।४।।

अपने जीवन कुछ शेष।


सपनों के इस सूने घर में,

हम हैं आज अकेले।

यहीं लगा करते थे जब तब,

सब खुशियों के मेले।।

अब यादों के अवशेष।

वो जाके बसे परदेश।।५।।

अपने जीवन कुछ शेष।

कवि मोहन श्रीवास्तव
महुदा, झीट, अम्लेश्वर,दुर्ग,छत्तीसगढ़


दिनांक १३.०३.२०२४