Monday 10 October 2011

सपने सब है बिखर गए

लुट गया चमन देखो मेरा,
कोई उज़ड़े हुए बाज़ारों की तरह !
टूट गया गया है दिल मेरा,
कोई कांच की दीवारों की तरह !!

सपने सब हैं बिखर गए,
जैसे उड़ते हुए बादल की तरह !
अपने सब कोई किधर गए,
मै ढूढूं उन्हे पागल की तरह !!

मिल गए खाक मे अरमा मेरे,
कोई जलते हुए अंगारो की तरह !
हो गया आज मै देखो कैसे,
उन चलते -फ़िरते बंज़ारों की तरह !!

हालत हो गई देखो अपनी,
कोई लूटे हुए व्यापारी की तरह !
हाल सुनाऊं मै अब क्या ,
मेरा हाल कोई ज़ुआरी की तरह !!

यादें रुक-रुक कर आती हैं,
उन आती-जाती लहरों की तरह !
कहीं चैन नही- आराम नही,
उन भीड़ भरे शहरों की तरह !!
कहीं चैन नहीआराम नही,


उन भीड़ भरे शहरों की तरह........




मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-०१/११/२००१, बृहस्पतिवार,सुबह- .४५ बजे,

नामक्कल(तमिलनाडु)

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