लुट गया चमन ए देखो मेरा,
कोई उज़ड़े हुए बाज़ारों की तरह !
टूट गया गया है दिल मेरा,
कोई कांच की दीवारों की तरह !!
सपने सब हैं बिखर गए,
जैसे उड़ते हुए बादल की तरह !
अपने सब कोई किधर गए,
मै ढूढूं उन्हे पागल की तरह !!
मिल गए खाक मे अरमा मेरे,
कोई जलते हुए अंगारो की तरह !
हो गया आज मै देखो कैसे,
उन चलते -फ़िरते बंज़ारों की तरह !!
हालत हो गई देखो अपनी,
कोई लूटे हुए व्यापारी की तरह !
हाल सुनाऊं मै अब क्या ,
मेरा हाल कोई ज़ुआरी की तरह !!
यादें रुक-रुक कर आती हैं,
उन आती-जाती लहरों की तरह !
कहीं चैन नही- आराम नही,
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-०१/११/२००१, बृहस्पतिवार,सुबह- ३.४५ बजे,
नामक्कल(तमिलनाडु)
No comments:
Post a Comment