महा पुरूष जो होते हैं,
उन्हे नाम-दाम की परवाह नही !
भलाई के काम सदा वे करते,
उन्हे और किसी कि चाह नही !!
मज़हब-धर्म नही कोई उनका,
बस ईंषानियत धर्म होता उनका !
उनके दिल मे नफ़रत है नही,
बस प्यार भरा दिल रहता उनका !!
वे चले गए तो फ़िर क्या हुआ,
वे आदर्श तो अपने छोड़ गए !
उनके आदर्शों को अपनाएं हम,
जो टूटे दिलों को जोड़ गये !!
सच्चाई की राह पे चलके,
वे कितने ज़ुल्मों को सहते हैं !
उन्हे अन्याय कभी स्वीकार नही,
परोपकार सदा वे करते हैं !!
वे किसी एक जाति के नही,
न तो किसी मज़हब के हैं !
समस्त विश्व है घर उनका,
वे न तो किसी शरहद के हैं !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक- ०५/११/२००१, सोमवार, रात- १०.४५ बजे,
नामक्कल , (तमिलनाडु)
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