आ मेरे लाल, आंचल मे छिपा लूं मै तुम्हें !
कब से रूठा है तू ,सीने से लगा लूं मै तुम्हें !!
आ मेरे लाल...........
तू जब नन्हा सा था खिलौना,मेरी इन बाहों का !
जब कभी हंसता था, तो खुशियां मिलती थी हमें !!
आ मेरे लाल........
तेरे रोने से पहले, मै भी रोने लगती !
लोरियां गाती हुई, थपकी से सुलाती थी तुम्हें !!
आ मेरे लाल.........
तेरे सोने जैसे मुखड़े, को सजाती रहती !
सारी दुनिया की ,नज़रों से बचाती थी तुम्हें !!
आ मेरे लाल.........
जब कभी सीने से ,मेरे तुम जुदा होते थे !
ठंडी रातों मे, गर्म बिस्तर पे लिटाती थी तुम्हे !!
आ मेरे लाल................
अब जब तू दूर, चला ही गया है मेरे से !
तू जहां भी रहे ,तुझे लाखों है दुआएँ मेरी!!
आ मेरे लाल........
कभी ठोकर ना लगे, कांटा न चुभे तेरे पावों में !
मै मिलुंगी , तू जहां भी रहे तेरे राहों में !!
आ मेरे लाल............
तूं सदा खुश रहे, और लगे मेरी ऊमर !
तू सूरज की तरह चमके,और आसान हो जीवन का सफ़र !!
आ मेरे लाल, आंचल मे छिपा लूं मै तुम्हे !
कब से रुठा है तू,सीने से लगा लूं मै तुम्हे !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
१७/५/१९९९,सोमवार,शाम ६ बजे,
चन्द्रपुर महा.
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