Monday 6 May 2013

रबड़ी तो केवल रबर स्टाम्प थी

लोक तन्त्र नही था बिहार  मे,
वहां लालू तन्त्र का बोल-बाला था
रबड़ी तो केवल रबर स्टाम्प थी,
वहां हर जगह लालू का घोटाला था॥

चोरी और सीना -जोरी कि राह पे ,
लालू जी वहां पर चलते थे
दोषी होकर के भी ,
निर्दोष होने का दम वो भरते थे

यह कैसा लोकतन्त्र ,
जहां अपराधियों को ताज पहनाया जाता।
ऐसे पापियों को सजा के बदले ,
उनका जय-जय कार बुलाया जाता॥

पकड़े जाने पर जेलों मे इन्हे,
एक घर जमाई की तरह पाला जाता
इन्हे पुलिसिया डंडे के बदले ,
ताबड़ -तोड़ सलाम मारा जाता

असली कसुरवार तो हम ही हैं,
जो हम ऐसे लोगो को चुनते हैं।
अपने किमती वोटों का दुरुपयोग कर,
अपने लिये मौत का कफ़न हम बुनते हैं॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचनांकन दिनांक -२१--२०११
रायपुर



2 comments:

Unknown said...

जनता के पास कोई विकल्प नहीं हैं । सभी चोरों में से एक को तो चुनना ही पडता हैं । एक अच्छी कविता ..

Mohan Srivastav poet said...

सावन कुमार जी,
आप बहुत सही कह रहे हैं,धन्यवाद