वहां लालू तन्त्र का बोल-बाला था ।
रबड़ी तो केवल रबर स्टाम्प थी,
वहां हर जगह लालू का घोटाला था॥
चोरी और सीना -जोरी कि राह पे ,
लालू जी वहां पर चलते थे ।
दोषी होकर के भी ,
निर्दोष होने का दम वो भरते थे ॥
यह कैसा लोकतन्त्र ,
जहां अपराधियों को ताज पहनाया जाता।
ऐसे पापियों को सजा के बदले ,
उनका जय-जय कार बुलाया जाता॥
पकड़े जाने पर जेलों मे इन्हे,
एक घर जमाई की तरह पाला जाता ।
इन्हे पुलिसिया डंडे के बदले ,
ताबड़ -तोड़ सलाम मारा जाता ॥
असली कसुरवार तो हम ही हैं,
जो हम ऐसे लोगो को चुनते हैं।
अपने किमती वोटों का दुरुपयोग कर,
अपने लिये मौत का कफ़न हम बुनते हैं॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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रचनांकन दिनांक -२१-२-२०११
रायपुर
2 comments:
जनता के पास कोई विकल्प नहीं हैं । सभी चोरों में से एक को तो चुनना ही पडता हैं । एक अच्छी कविता ..
सावन कुमार जी,
आप बहुत सही कह रहे हैं,धन्यवाद
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