"मदिरा सवैया"
"नेह भरी अखियां कजरा"
नेह भरी अखियां कजरा, गजरा नित शीश सुहावत है ।
वायु उड़ाय रहे अचरा, बदरा जिमि केश उड़ावत है ।।
पायल पायन में पहिरे ,छिन में छिन में छनकावत है।
अंग अनंग समाय रहा, जिमि नागिन सी बलखावत है।।१।।
तीर सरोवर बैठि गई ,पद वारिज छपा छपकावत है ।
घूंघर बाजि रहे झम से, कर मे कंगना खनकावत है।।
नैनन ढूंढ रही कछु तो,गरवा उचुकाइ ढुढ़ावत है।
रुप अनूप लगे मन को,बिजुरी जइसे चमकावत है।।२।।
गागर लेइ चली घर को,कनिहा रहिके मटकावत है ।
धारि रही कटि पे गगरा,इतरावत है छलकावत है।।
भीग रहे कजरा अचरा, झुमका हिलि भानु लजावत है।
लाल कपोल सुहाय रहे,लट नीर बहाय रिझावत है।।३।।
गात पलाश सुहाय रहे, हर अंग लगे गदरावत है।
कोयल भांति लगे बतिया,जिमि गीत नवीन सुनावत है।।
हास लगे मधुमास महा,मुसुकान जिया धड़कावत है।
बाउर होइ रहे सबही,लखि रूप हिया हुलसावत है।।४।।
मोहन श्रीवास्तव
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