"मंदारमाला सवैया"(वर्णिक)
(वनवास जाते समय श्री राम जी से सीता जी का वन जाने के लिए विनती करना)
हे नाथ कांतार मैं भी चलूँगी, बिना आप कोई सहारा नहीं ।
मैं आपकी संगिनी नेह प्यासी, बिना आप कोई हमारा नहीं ।।
स्वामी बिना भामिनी है अधूरी, पिया के सरीखा अधारा नहीं ।
आमोद सारे मुझे दाह देंगे, बिना आपके तो गुजारा नहीं ।।1।।
आभूषणों से नहीं मोह कोई, मुझे नेह नाते सुहाते नहीं ।
छाया बनूँगी जहाँ धूप होगी , हमें राजसी भोग भाते नहीं ।।
देखा करूंगी पिया पाँव जोड़े, जिसे देख नैना अघाते नहीं ।
पानी बिना नाथ सूखी नदी सी, पिया के बिना नेह नाते नहीं ।।
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