पिते शराब हो क्यूं ऐसी,
जहा नफ़रत ही नफ़रत तुम्हे मिले!
तुम्हारे मुह की दुर्गन्ध सूंघकर,
अपनो से भी ठोकरे तुम्हे मिले!!
अपने पैसो की बर्बादी कर,
क्यु अपने तन को आग लगाते हो!
बिष के समान मदिरा पीकर,
अपने घर मे आतंक मचाते हो!!
पत्नी-बच्चो पर अपना रोब दिखा,
तुम इनके मन मे दहशत फ़ैलाते हो!
नर्क बना डाले तुम घर अपना,
जब शराब पी के तुम आते हो!!
अपने बच्चो का भविष्य बनावो,
और शराब को पिना बंद करो!
पत्नी की खुशिया लौटा के,
परिवार मे रहकर आनंद करो!!
खावो कसम दिल से तुम अपने,
अब शराब को हाथ नही लगाएंगे!
आगे की ज़िंदगी को हम अपने,
हस-मिल के इसे बिताएंगे!!
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-१८/१२/२०००,सोमवार,शाम ७ बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
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