चाह नही मुझे ऐसी भेंट का, जब राहों में मैं फेंका जाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ ईनाम पुरष्कारों की नही चाह, जब नहीं मिले तो दुःख पाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ चाह मुझे उन अच्छे ईंषानों का, जिनके दिल मैं बस जाऊं । चाह मुझे उन सत्य पथिक का, जिनके चरणों में मैं चढ़ जाऊं ॥ चाह मुझे उन हवाओं का, जब मैं खुशबू उनके संग बिखराऊ । चाह मुझे भगवान के चरणों का, जहां हसते हसते मैं चढ़ जाऊं ॥ मोहन श्रीवास्तव (कवि)
Thursday, 30 March 2023
"मदिरा सवैया""नेह भरी अखियां कजरा"
Wednesday, 29 March 2023
सरसी छंद ( आज जगत में गूंज रहा है)
"सरसी छंद"
(भव्य भुवन निर्माण हो रहा)
आज जगत में गूंज रहा है, जय जय जय श्रीराम।
भव्य भुवन निर्माण हो रहा,अवध पुरी सुखधाम।।
पांच सदी मे सनातनी के,जागे सोये भाग।
आज बुझी है धधक रही थी,सदियों से जो आग।।
मुगल लुटेरे राम भवन का,किये विकट विध्वंस।
लाखों हिन्दू मार काटकर, मिटा दिये थे वंश।।
मंदिर ऊपर मस्जिद गढ़कर, किये लुटेरे काम।
कार सेवकों ने कर डाला, उसका काम तमाम।।
रामभक्त बलिदान हुए जो,नमन करें हम आज।
सत्य सनातन की रक्षा में,सारा राम समाज।।
तंबू मे श्रीराम विराजित, देख दुखित सब लोग।
न्यायालय ने दिया फैसला, तभी बना संयोग।।
ऐसे शासक जन का हम पर,बहुत बड़ा उपकार।
जिनकी मेहनत और लगन से,हमें मिला उपहार।।
भगवा अपना विजय पताका, कलशा घर के द्वार।
दीपों से मन रही दिवाली, घर घर वंदनवार।।
कोटि कोटि सब रामभक्त को,मोहन करे प्रणाम्।
राम नाम के दिये जलाओ,अपने अपने धाम।।
आज जगत में गूंज रहा है, जय जय जय श्रीराम।
भव्य भुवन निर्माण हो रहा,अवध पुरी सुखधाम।।
मोहन श्रीवास्तव
Tuesday, 28 March 2023
विजात छंद ("माँ की ममता" छिपा लूं लाल आँचल में
"माँ की ममता"
(विजात छंद)
छिपा लूँ लाल आँचल में, नज़र तुमको न लग जाए।
सुलाऊँ गोद में तुमको, मुझे भी चैन मिल जाए।।
गया है दूर मुझसे तूँ, तुझे नित याद करती हूं।
करूँ जब याद वचपन की, नयन में अश्रु भरती हूँ।।
खिलौना था कभी मेरा, तुम्हारे साथ मैं खेलूँ।
तुम्हारी तोतली बातें, सभी हँसते हुए झेलूँ।।
बुलाऊँ दूर भागे तूँ, खिलाऊँ तो नहीं खाए।
सुलाऊँ गोद में तुमको, मुझे भी चैन मिल जाए।।1।।
लिटाती शुष्क बिस्तर पर, कभी नम तूँ जिसे करता।
लगाती वक्ष से तुझको, कभी जब लाल था डरता।।
पकड़कर हाथ की उँगली, तुझे लल्ला चलाती थी।
करे अच्छी पढ़ाई तूँ, समय से मैं जगाती थी।।
जहां भी तूँ रहे प्यारे, सदा आशीष तूँ पाए।
सुलाऊँ गोद में तुमको, मुझे भी चैन मिल जाए।।2।।
छिपा लूँ लाल आँचल में, नज़र तुमको न लग जाए।
सुलाऊँ गोद में तुमको, मुझे भी चैन मिल जाए।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
13.12.2022
Sunday, 26 March 2023
कोरोना ने कर दिया
"हमहूं बनब अंगरेजिन" (भोजपुरी)
Tuesday, 21 March 2023
"नववर्ष अपना चैत्र मास में ही मनाओ"
"नववर्ष अपना चैत्र मास में ही मनाओ"
परंपराओं रीति-रिवाजों को निभाओ।
संस्कार भारती को कभी भी न भुलाओ।।
परंपरा व रीति-रिवाजों को निभाओ.....
पश्चिम की सभ्यता का अब छोड़ अनुकरण।
पूरब की संस्कृति को दिल में है बसाओ।।
परंपराओं रीति-रिवाजों को निभाओ.....
परिवार साथ मंदिरों में जाइए सभी।
परोपकार करके दिल से हर्ष लुटाओ।।
परंपराओं रीति-रिवाजों को निभाओ.....
माथे पे रक्त चंदन मौली कलाई में।
गीता रामायण वेद पढ़ो और पढ़ाओ।।
परंपराओं रीति-रिवाजों को निभाओ....
शास्त्र के भी साथ में ही शस्त्र जरूरी।
दुष्टों व देशद्रोहियों को और दूर भगाओ।।
परंपराओं रीति-रिवाजों को निभाओ.....
जात पात भूल के सनातनी हो एक।
केसरी ध्वजा को साथ मिलके उठाओ।।
परंपराओं रीति-रिवाजों को निभाओ.....
बच्चों को सनातन का संस्कार सिखाओ।
देश के भक्तों का इतिहास बताओ।।
परंपराओं रीति-रिवाजों को निभाओ.....
बेटे व बेटियों में ना कोई भेद हो।
शिक्षा के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम बढ़ाओ।।
परंपराओं रीति-रिवाजों को निभाना.....
हर तीज व त्योहार में सब कोई साथ हो।
नववर्ष अपना चैत्र मास में ही मनाओ।।
नववर्ष अपना चैत्र मास में ही मनाओ।।
परंपराओं रीति-रिवाजों को निभाओ।
संस्कार भारती को कभी भी न भुलाओ।।
परंपराओं रीति-रिवाजों को निभाओ.....
कवि मोहन श्रीवास्तव
Monday, 20 March 2023
छन्द : "पञ्चचामर"(श्री दुर्गा ताण्डव स्तोत्र)
छन्द : "पञ्चचामर"
(श्री दुर्गा ताण्डव स्तोत्र)
सवार सिंह चंडिका अतीव क्रुद्ध जो चले।
प्रचण्ड रूप देख पुष्ट दुष्ट धृष्ट हैं जले।।१।।
किरीट शीष नेत्र भाल पाँव साज पैजनी।
शरीर सौम्य गौरवर्ण क्रोध वेग बैगनी।।२।।
प्रसून लाल कंठहार,मध्य अंग मेखला।
सुदीप्त स्वर्ण कर्णफूल, रत्न से भरा गला।।३।।
पलाशरंग ओढ़नी, त्रिशूल हस्त अंबिका।
सुगंध है प्रवाहमान दिव्य देह चंडिका।।४।।
सरोज चक्र खड्ग हस्त, चाप बाण है लिए।
अराति यातुधान मार, मोक्ष धाम है दिए।।५।।
प्रघोर तीव्र बाण छोड़, दैत्य दुर्ग भेदती।
कराल काल मार बाण, शत्रु कान बेंधती।।६।।
त्रिशूल चाप शंख आदि, अस्त्र शस्त्र धारती।।
लिए गदा कटार ढाल, दुष्ट दैत्य मारती।।७।।
समूल दैत्यवंश नष्ट, ढूँढ ढूंँढ के करे,
अराति नाश हेतु मांँ अनेक रूप को धरे ।।८।।
घिरी सदा पिशाचनी, अघोर रौद्र रुप से ।
निशाचरों को मार मार, मंद मंद हैं हँसे।।९।।
दुरात्म रक्तबीज काट, रक्त पात्र में भरे।
कपालिनी समस्त रक्तपान रोष से करे।।१०।।
निशुंभ शुंभ चंड मुंड, आदि यातुधान को।
हते समस्त दैत्य खेल, खेल लेत प्राण को।।११।।
उमा सती शिवा अनेक, नाम एक रूप है।
महान भक्तवत्सला, करालिका स्वरूप है।।१२।।
मुनीन्द्र इन्द्र वा सुरारिवृंद प्रार्थना करें।
सुभक्त संत आदि की, सुसिद्ध याचना करे।१३।।
सुभक्त आर्तनाद से कृपामयी प्रसन्न हो।
मलीनता मिटे समस्त प्राण धन्य धन्य हो।।१४।।
कृपा कटाक्ष मोहना करो सदा प्रियंवदा।
प्रसिद्ध सिद्ध चंडिका रहो सहाय सर्वदा ।।१५।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
20.03.2023
महुदा पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़
Friday, 17 March 2023
"श्री काली ताण्डव स्तोत्र" ,छन्द : पञ्चचामर (कवि मोहन श्रीवास्तव )
"श्री काली ताण्डव स्तोत्र"
छन्द : पञ्चचामरमहान रौद्र रूप धार ,क्रोधयुक्त कालिका,
करे निनाद जोर जोर, तीव्र वेग से चली।
करे प्रघोर अट्टहास, लेत सांस रोष से,
मशान भूमि में निवास, हुई बड़ी उतावली।।1।।
लिए कटार खड्ग हाथ, लाhusल लाल नेत्र हैं ।
निकाल जीभ को विशाल,सर्व अस्त्र धारती।।
चली अपार शक्ति श्रोत, पापनाशिनी चली ।
सुकंठ धार मुण्डमाल, क्रोध से पुकारती ।।2।।
मुखारविन्द मुक्तकेश, क्रोध में सनी हुई ।
बलात् शत्रु शीष काट, उग्र रूप धारती ।।
प्रचंड खंड दुष्ट दण्ड, दाँत पीसती हुई ।
अराति सर्वनाश त्रास, क्लेश को निवारती ।। 3।।
त्रिशूल शंख चक्र हाथ, दुष्ट म्लेक्ष मारती,
किरीट सीस दिव्य धार , क्रोध से दहाड़ती,
लिए विशाल चाप बाण, हाथ में गदा लिए,
अनेक अस्त्र शस्त्र साज, रौद्र जीभ काढ़ती।।4।।
सवार मातु लाश यान, तीव्र वेग से चली,
प्रसून रक्त वर्ण हार, कंठ में मनोहरा।
बलात शत्रु काट सीस, से धरा है पाटती,
रक्तयुक्त ओष्ठ चाट , देख दुष्ट है डरा।।5।।
गिरीश पुत्रि शंभु कंत, नाथ की सुहागिनी,
सती उमा शिवा स्वरूप, भक्त पाप जारती।
शरीर वर्ण श्वेत श्याम, दिव्य नीलिमा लिए,
हँसीमुखी त्रिनेत्र भाल,संत क्लेष हारती।।6।।
स्वरूप दिव्य देख देख, यातुधान भागते,
सुजान संत भक्त लोग, पे कृपा विखेरती।
अपार है अगाध सिंधु, मातु की दयालुता,
भरोस जो करे सुभक्त, हर्ष वो उड़ेलती।।7।।
कभी भुला न मातु दास, ये अशीष चाहता,
करो न दूर पांव आप, द्वार पे पड़ा रहूं ।
कृपा करो सदैव देवि, सर्व लोक धारिणी,
पड़ूं न लोभ काम आदि, भक्ति में रमा रहूं।।8।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
महुदा, झीट, पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़
17.03.2023
Thursday, 16 March 2023
"जय महाकाली स्तुति"छन्द : पञ्चचामर
Tuesday, 14 March 2023
"मनुज सवैया" बेटी की विदाई
Friday, 10 March 2023
Sunday, 5 March 2023
महादेव की होली, मत्तगयंद सवैया। कवि मोहन श्रीवास्तव
Saturday, 4 March 2023
"शिव होली उत्सव"(मत्तगयंद सवैया )
"शिव होली उत्सव"
(मत्तगयंद सवैया )
खेल रहे शिव नाथ हिमालय, संग भुजंग महा गण होली।
भांग धतूर हलाहल पीकर , शंभु निकाल रहे बहु बोली।।
खूब मनाय रहीं गिरिजा पर, बाउर आज भए त्रिपुरारी।
हासत रोवत गावत नाचत, भागि रहे चहु ओर दुआरी।।1।।
बाल गणेश उमा सह कार्तिक, तीनहु लोग मनाय रहे हैं।
शांत रहो हुड़दंग करो जनि, पाहुन वे मुसुकाय रहे हैं।।
मांगत भांग धतूर सदाशिव, मातु उमा समुझाय रही हैं।
घूंघट में गुझिया भजिया पति , स्नेह समेत खिलाय रही हैं।।2।।
नाग करें फुफकार दनादन, प्रेत पिशाच महागण नाचें।
रंग अबीर उड़ाय रहे नभ, शंभु कथा मुख से निज बांचे।।
गंग हुई मनमुग्ध दशा लखि, प्राणपिया बउराय गए हैं।
मोद तरंग उड़ेल रही सिर, चंद्र प्रभा बिखराय रहे हैं ।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
ufra jheet patan durg Chhattisgarh
1.3.2023
Thursday, 2 March 2023
"लक्ष्मी अष्टपदी"
१११ १११ ११ २११, ११ २११२
१११ १११ ११ २१, ११११ २१ १२
अन धन जन सुखदायिनि, वरदायिनि हे।
शतदल पुहुप विराज, जय जय विष्णु प्रिये।।1।।
सुर नर मुनि जन गावत, नित ध्यावत हे।
भगतन नित सुख देत,जय जय विष्णु प्रिये।।2।।
बनत चुगद तव वाहन, सब लोक फिरे।
करत अधम धन नाश,जय जय विष्णु प्रिये।।3।।
हरि चरणन नित सेवत, सुख लेवत हैं।
करत जगत उपकार,जय जय विष्णु प्रिये।।4।।
गणपति तव सुत दत्तक, भव रक्षक हैं।
प्रथम करत जन ध्यान,जय जय विष्णु प्रिये।।5।।
सकल कलह दुःख भागत, धन आवत हे।
निशि दिन कर गुणगान,जय जय विष्णु प्रिये।।6।।
हरि प्रिय सहज उदारिन, जग धारिनि हे।
कर धर निज तलवार,जय जय विष्णु प्रिये।।7।।
अरज करत यह मोहन , धन वैभव दे।
कर नहि सकत बखान,जय जय विष्णु प्रिये।।8।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
12.30 बजे
उफरा झीट पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़