चाह नही मुझे ऐसी भेंट का, जब राहों में मैं फेंका जाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ ईनाम पुरष्कारों की नही चाह, जब नहीं मिले तो दुःख पाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ चाह मुझे उन अच्छे ईंषानों का, जिनके दिल मैं बस जाऊं । चाह मुझे उन सत्य पथिक का, जिनके चरणों में मैं चढ़ जाऊं ॥ चाह मुझे उन हवाओं का, जब मैं खुशबू उनके संग बिखराऊ । चाह मुझे भगवान के चरणों का, जहां हसते हसते मैं चढ़ जाऊं ॥ मोहन श्रीवास्तव (कवि)
Monday, 24 April 2023
"मत मारो तुम मुझे कोख मेंं"
Friday, 21 April 2023
"पर्व उत्सवों त्योहारों से, भारत की पहचान"
पर्व उत्सवों त्योहारों से, भारत की पहचान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।
होते हैं दिन कितने अच्छे , हर त्योहार मनाते हैं।
घृणा द्वेष को दूर भगाकर, प्रेम वहां विखराते हैं।।
चैत्र मास के नए वर्ष में, खुशियां खूब लुटाते हैं।
घर आंगन व गली चौक में, तोरण ध्वजा लगाते हैं।।
धूम धाम रहती है भारी, माता के नौराते में।
नौ दिन करके ब्रत उपवासा, भजन करें जगराते में।।
जन्मोत्सव हनुमान राम का , करें मनाकर ध्यान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।1।।
वैशाखी में बल्ले बल्ले, खुशी मनाते संग दादी।
परशुराम जयंती अक्षय तृतिया , गुड्डा गुड़िया की शादी।।
जगन्नाथ रथ की यात्रा को , देश मनाता है सारा।
बलराम सुभद्रा संग कृष्ण का, भक्त करे हैं जयकारा।।
पावन श्रावण में भोले का, कावड़ यात्रा बम बम बम।
नागपंचमी भाई बहना,का पावन रक्षाबंधन ।।
भाद्र महिना तीज व कजरी, करें बेटियां गान ।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।2।।
मथुरा सहित सभी जगहों में, कृष्ण जन्म उत्सव भारी।
नैनों में रख छवि मोहन की, खुशी मनाते नर नारी।।
शारदीय नवरात्रि मनाते, क्वार मास में भक्त सभी।
अम्बे रानी की महिमा को, गाते सुनते लिखें कवी।।
महिषासुर बध कर मां दुर्गा, मोद धरा विखराई थी।
भगवान राम ने रावण बध कर, विजय लंक पर पाई थी।।
अधर्म हारता धर्म जीतता , देत दशहरा ज्ञान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।3।।
घर आंगन की करें सफाई , कार्तिक मास दिवाली।
गणपति लक्ष्मी पूजा करते , कहीं पूजते मां काली।।
घर घर दीप जलाकर करते , मनमंदिर में उजियारा।
भ्रात दूज गोवर्धन पूजा, कान्हा जी का जयकारा।।
देव उठउनी एकादशी में,हरि का ध्यान लगाते हैं।
तुलसी मइया के विवाह को, हर्षोल्लास मनाते हैं।।
मार्गशीर्ष में देव दिवाली, पुण्य मास में दान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।4।।
पौष मास में मकर संक्रांति , का त्योहार मनाते हैं।
नदियों तीर्थों में लोग नहाकर, श्रद्धा भक्ति बढ़ाते हैं।।
माघ मास का मौनी अमावस,बसन्त पंचमी सतरंगी।
फागुन में होली संग जीवन, होता है रंग विरंगी।।
प्रतिदिन त्योहार अनेकों , मोहन सभी मनाते हैं।
मन में प्रभु का ध्यान लगाकर, करुणा दया लुटाते हैं।।
सभी सनातन संस्कारों को, कहते वेद पुरान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।5।।
पर्व उत्सवों त्योहारों से, भारत की पहचान।
सत्य सनातन धर्म मार्ग में, जीवन है आसान।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
Tuesday, 18 April 2023
"श्री हनुमत ताण्डव स्तोत्र"(भावानुवाद)छन्द : पञ्चचामर
"श्री हनुमत ताण्डव स्तोत्र"(भावानुवाद)
छन्द : पञ्चचामर
करूँ कपीश वंदना हिया ले शुद्ध भावना,
सदा करूँ गुणानुवाद कूच सिन्धु जो करें।
विशालभानु भक्षते व भक्तप्राण रक्षते,
महान् रामदूत से कराल काल भी डरे।।१।।
पिता समीर मातु अंजनी गुरू दिनेश हैं,
गदा विशाल वामहस्त राम नाम जापते।
सदैव रामभक्त पे कृपालु हैं उदार हैं,
मलीन दुष्ट भूत प्रेत म्लेक्ष देख कांँपते।।२।।
सुहाग रेणु अंग अंग अस्त्र शस्त्र से सजे,
विराट रामदूत रूप देख दुष्ट दंग है।
विशाल पुच्छगुच्छ स्वर्णतुल्य हाथ में गदा,
सदैव रामकाज हेतु वक्ष में उमंग है।।३।।
सुकर्म भक्त याचना करें सुसिद्ध कामना,
प्रभो अभक्तकाज में प्रघोर विघ्न डालते।
समस्त कार्यसिद्धकार पूज्य हैं प्रणम्य हैं,
सदैव रामभक्त प्राण के समान पालते।।४।।
जनित्व काँध सोहते प्रचण्ड दैत्य को हते,
बना कनिष्ठ दीर्घ रूप दैत्य सन्त तारते।
बलिष्ठ कांतियुक्त मुक्त तीनलोक नापते,
विलोक श्रेष्ठ भक्ति भाव राम जी पुकारते।।५।।
किरीट माथ हाथ में ध्वजा विशाल गेरुवा,
लंगोट लाल दिव्यभाल भक्ति भावना पगे।
पहाड़ दीर्घ हाथ में मुखारविन्द लोभते,
शरीर तेजपूर्ण दिव्य भव्य रूप शोभते।।६।।
कपीश अग्रदूत रामयूथ हैं महाबली,
फणीशनाथ रामभ्रात के सदा मनोग्य हैं।
विराट सूर्य के समान तेजपुंज रूप है,
दिखाय रत्नवृत्त को कहें सदा अयोग्य है।।७।।
विदेहजाति शोक तापनाश आपने किया,
प्रहार हेतु पुष्ट दुष्ट काल रूप धार के।
कनिष्ठ रूप आप हैं विराट रूप भी प्रभो,
सदैव भक्त की पुकार क्रोध मोह जार के।।८।।
पहाड़ वृक्ष आदि पे लिखे पवित्र राम को,
रचे विशाल रामसेतु सैन्य को उतारने।
प्रघोर घोर अट्टहास रौद्र रूप काल से,
अभेद्यदुर्ग लंक खण्ड खण्ड में विदारने।।९।।
मिला कपींद्र राम से करा बहोर कामिनी,
विशाल पूंछ से अभेद्य लंक आप जारते।
प्रघोर मुष्टिका दिखा दशाननादि ताड़ते,
लपेटि पूंछ में अनेक यातुधान मारते।।१०।।
दयालु आञ्जनेय धान्य वैभवादि दे दिये,
सप्रेम नेम वायुपुत्र पाठ नित्य जो पढ़े।
समस्त रोग दोष आदि नष्ट हो सुखी रहें,
अपार शक्ति प्राप्त हो समाजकीर्ति भी बढ़े।।११।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
महुदा पाटन दुर्ग
29.1.2023