Monday 17 October 2011

अनमोल होते है ये रिश्ते


कब शुरु हुई है कहां से,
इन रिश्तों कि ये कड़ियां !
चलते-फ़िरते जाने-अन्जाने,
कब रिश्तों कि बन जाए लड़ियां !!

कभी देखा नही,जिसे सुना नही,
उनसे कब रिश्तो कि डोर मे बंध जाएं !
कभि जान नही-पहचान नही,
उनसे रिश्तो कि नेह कब लग जाए !!

कुछ रिश्ते होते अटूट हैं,
जो कभी टूट नही पाता दिल से !
हम रहे या ना रहे उनमे,
हमे भुलाया नही जा सकता मिल के !!

ये रिश्ते भी कैसे होते हैं,
जो कभी नफ़रत से प्यार मे बदल जाते !
दोस्ती से दुश्मनी के रिश्ते,
कुछ रिश्ते जीत के भी हार मे बदल जाते !!

कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं,
जिनकी याद से आंखे भर आए !
कोइ अन्त नही इन रिश्तों का,
ये रिश्तों से जुड़ते चले जाए !!

कोई बाज़ार बना नही है अब तक,
जहा रिश्तों की बोली लगाई जाए !
अनमोल होते है ये रिश्ते,
इनमे बस प्यार की ज्योति जलाई जाए !!

कब शुरू हुई है कहां से,
इन रिश्तों कि ए कड़ियां !
चलते-फ़िरते जाने-अंजाने,
कब रिश्तों कि बन जाए  लड़ियां !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक- ३०/१०/२०००,सोमवार,
शाम - ०५:०० बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)





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