आज मिलने की ईच्छा बहुत थी मगर!
तुम बहुत दूर पर की हो मुझसे बसर!!
पर मेरी तमन्ना थी तुम मिल जाती अगर!
कट गया होता सुंदर रात का ये सफ़र!!
दिन-रात तुम मेरी आंखो के सामने!
आती रहती हो जैसे कोई शिशे का महल!
तुम रात मे लगती हो चांदनी की तरह!
दिन मे सुरज के उगने से बन जाती कमल!!
मै तुम्हे भुलाने की कोशिश कर रहा हु बहुत!
पर तुम नही भुलती मुझको आठो पहर!!
मै जितना ही भुलाने की कोशिश करुं!
तुम नही भूलती मै बया करु किस कदर!!
आज मिलने की ईच्छा......
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-२७/६/१९९१ ,बॄहस्पतिवार,दोपहर -११.१० बजे,
एन.टी.पी.सी.दादरी.गाजियाबाद(उ.प्र.)
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