Monday 21 November 2011

भजन(भगवान जी का)



मेरी नइया पड़ी मझधार मे, प्रभु आके मुझे उबारो!
इक संकट खड़ा हैसामने,प्रभु आके मुझे उबारो!!
मेरी नइया....
ये मेरी कश्ती डूब रही है आके दे दो सहारा!
हे मन मोहन श्याम सलोने आके दे दो किनारा!!
तीन जने मिल डुबा रहे है ,मै हू अकेला आज!
इन तिनो को दूर भगाकर, कर दो मेरे काज!!
सुंदर श्याम सलोना गिरिधर मोहन मदन मुरारी!
तेरे नाम अनेको है प्रभु सगुन-अगुन-निरंकारी!!
तेरा सहारा केवल भगवन कोई नही है मेरा!
आके मेरी लाज बचालो कहा किए हो बसेरा!
ये जग सारा झुठा भगवन,जैसे कोई मेला!
चार दिनो की जींदगानी मे सब करते है खेला!!
जब संकट मे पड़ते है प्रभु तब-तब तुम्हे पुकारे!
तुम ओ कितने दीन-दयालु सब के संकट काटे!!
जो जिस भाव से लेते है प्रभु तेरा कोई नाम!
उसी रुप मे सबके प्रभु आके करते काम!!
मेरे को सब ताने कसते,हसते है मुझ पर!
मेरा अपना कोई नही है एक सहारा तुझ पर!!
अब मै हार गया हु सबसे कोई नही है आश!
मुझको पुरी आशा है प्रभु तुम आवोगे मेरे पास!!
मेरी नइया पड़ी मझधार मे प्रभु आके हमे उबारो!
इक संकट खड़ा है सामने प्रभु आके हमे उबारो....

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-६/७/१९९१ ,शनिवार,रात्रि १०.१५ बजे,
एन.टी.पी.सी. ,दादरी ,गाजियाबाद (उ.प्र.)




2 comments:

Madan Mohan Saxena said...

सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको

Unknown said...

कविता को कविता कहना ही पूर्ण नहीं हैं कविता होनी भी चाहिए । जब मोहन जी मोहन तक बात पहुंचाए तब ही बात बनती हैं जो .हां बनी हैं ।