ऐ जाने वाले लोगों ,मुझे छोड़कर गये क्युं !
मै राह मे खड़ा था,मुह मोड़ कर गए क्युं !!
ऐ जाने................
की थी मैने क्या खता ,जो मुझे साथ ना लिये !
मागा था हमने और कोई,तुमने कुछ दिये !!
ऐ जाने..................
हम ना समझ सके है ,थी कौन ऐसी बातें !
हम सोच-सोच करके ,जगते है सारी रातें !!
ऐ जाने..............
ये अकेला हु मै यहा पे, कोई साथी ना हमारा !
मैने तो अपना सब कुछ, इस जिन्दगी मे हारा !!
ऐ जाने.............
हमको तो यारो तुमने, दोस्त ही कहा था !
पर मै बन गया मै दुश्मन ,लगता है इस जहां का !!
ऐ जाने..........
ये भी नही बताया कि ,तुम कहां गये !
हम देखते ही रह गए, और तुम चले गए !!
ऐ जाने..............
हमको भी अपने पास, बुला लो किसी तरह !
या हमे बता दो ,इसकी है क्या वजह !!
ऐ जाने...............
देखो तुम्हारा मोहन ,कुछ ना समझ सका है !
ये आखें हंस रही है ,पर दिल तो रो रहा है !!
ऐ जाने वाले लोगो...................
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-०२/०१/१९९२ ,बॄहस्पतिवार ,रात ,८.०५ बजे,
चन्द्रपुर (महाराष्ट्र)
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