दो दिल बिछुड़ रहे है,नही चाहते हुए !
फ़रियाद कर रहे है फ़िर मिलने के लिये
!!
दो दिल...........
दिपक के ये उजाले ,अंधेरे लग रहे हैं !
मिलने की आश मे हम,दिन-रात जग रहे हैं !!
दो दिल...............
सपने सुहाने अपने, कैसे बिखर रहे हैं !
बारिस की ऐसी बुंदे,शोले बरस रहे हैं !!
दो दिल..............
उनको बताए कैसे, मजबुरी का ये आलम !
रातें जुदाई की ये, होती नही है कम !!
दो दिल..............
आहट सी होती है,लगता वो आ रहे हैं !
दिल की ये धड़कन, मेरी बढ़ते ही जा रहे हैं !!
दो दिल .............
ईन्सान की तरह ही, ये रातें भी बेवफ़ा हैं !
मायुशी के ये बादल,अब भी मुझसे खफ़ा हैं !!
दो दिल.............
ये वक्त है या धागा,जो कि लम्बा ही खिंच रहा है !
फ़ुलों को जैसे माली,तेजाब से सिच रहा है !!
दो दिल.............
आखों की नींद मेरे ,बड़ी दूर हो गई है !
सपनों का सौदा करने, कही वो चली गई है !!
दो दिल............
मोहन की आरज़ू है ,जल्दी से वो मिले !
बाहों मे मुझको भरके,लग जाए वो गले !!
दो दिल बिछुड़ रहे है,नही चाहते हुए !
फ़रियाद कर रहे है फ़िर मिलने के लिये !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
६/७/१९९६,शनिवार,रात्रि,१२.१० बजे,
चन्द्रपुर(माहाराष्ट्र).
2 comments:
मोहन जी कमाल का लिखा हैं आपने मुझे हमेशा से ही प्रेम पर लिखना और पढना पसंद हैं ........ आभार
savan kumar ji ,
maine likha aapko pasand aaya ,ye mera saubhagya hai. mai aap logo ke liye ki likhata hu.
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