ये है भारत देश हमारा,
जहां हर रोज मुनीया की ईज्जत लुटी जाती ।
अपराधियों को डर है ही नही,
क्योंकि यहां हल्की सी सजा है दी जाती ॥
कुछ दिन गला फाड़ते हैं हम,
उन बेबस लाचारों के लिये ।
पर धीरे-धीरे सब भूल हैं जाते,
जो जख्म उन्हें उन आवारों ने दिये ॥
शाशनतन्त्र की नाकामी से,
आज नित-प्रति हादसे हो रहे हैं ।
कठोर कानून नही होने से,
आज हम खून के आंसू रो रहे हैं ॥
अभी कहीं कोई सुरक्षित है नही,
जाने कब किसकी बारी आ जाये ।
दहशत मे रहते लोग यहां,
कब किसकी ईज्जत पे आरी चल जाये ॥
समय बुरा होने के कारण,
हमे अपने से भी सोचना होगा ।
अश्लील हरकतों से रहें दूर,
और पुरे वस्त्रों को पहनना होगा ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
१९-४-२०१३,शुक्रवार,१२.३५ बजे,
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