खुश रहें आप जहां भी रहें,
मेरा प्यार आप को मिलता रहे ।
चेहरे पे नही हो मायुशी ,
मुखड़ा गुलाब सा खिलता रहे ॥
आप अथाह ग्यान के सागर हैं,
मै नन्हा बूंद सा उसमे हूं ।
आप खिलते हुये कमल से है,
मै भवरा आप के बस मे हूं ॥
सुरज हैं आप इस जहां के तो,
मै उससे निकलता किरण सा हूं ।
आप कहां हिमालय पर्वत तो,
मैं उसमे छोटा कंकड़ सा हूं ॥
मेरी कविता रूपी सुहागन की,
आप सभी श्रृंगार हैं ।
पसन्द आप का आशिर्वाद स्वरूप,
और आप हमारे प्यार हैं ॥
मै कुछ नही दे सकता हुं आप को,
बस गीतों की ये फ़ुलझड़ियां हैं ।
अपने हृदय पटल पर इसे जगह दिजिए,
मेरे लिये यही मोती व मणिया हैं,
मेरे लिये यही मोती व मणियां हैं ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१९-३-२०१३,मंगलवार,रात्रि-९.३५ बजे,
पुणे महा.
2 comments:
Very nice 10q so much for sharing it!
arun yadav ji,
thnks for your valuable comments.
Post a Comment