Saturday 4 May 2013

"मेरी कविता रूपी सुहागन की"

खुश रहें आप जहां भी रहें,
मेरा प्यार आप को मिलता रहे
चेहरे पे नही हो मायुशी ,
मुखड़ा गुलाब सा खिलता रहे

आप अथाह ग्यान के सागर हैं,
मै नन्हा बूंद सा उसमे हूं
आप खिलते हुये कमल से है,
मै भवरा आप के बस मे हूं

सुरज हैं आप इस जहां के तो,
मै उससे निकलता किरण सा हूं
आप कहां हिमालय पर्वत तो,
मैं उसमे छोटा कंकड़ सा हूं

मेरी कविता रूपी सुहागन की,
आप सभी श्रृंगार हैं
पसन्द आप का आशिर्वाद स्वरूप,
और आप हमारे प्यार हैं

मै कुछ नही दे सकता हुं आप को,
बस गीतों की ये फ़ुलझड़ियां हैं
अपने हृदय पटल पर इसे जगह दिजिए,
मेरे लिये यही मोती मणिया हैं,
मेरे लिये यही मोती मणियां हैं

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१९--२०१३,मंगलवार,रात्रि-.३५ बजे,
पुणे महा.


2 comments:

Unknown said...

Very nice 10q so much for sharing it!

Mohan Srivastav poet said...

arun yadav ji,
thnks for your valuable comments.