Wednesday 28 September 2011

दुश्मनों के लिए तो आग हैं हम


इस हरे-भरे गुलशन के हम ,
रंग -विरंगे फ़ूल हैं!
खुशबू हैं इस जहां के हम,
और इस देश की पावन धूल हैं!!

एक सूत्र मे बंधे हैं हम ,
जो हार गले का बन जाते हैं!
अलग - अलग मज़हब के घरों के हैं,
मगर हम मिलने पर यार बन जाते हैं !!

मित्रों के गले मे हार हैं पर,
दुशमनों के गले मे सांप हैं हम !
आपस में उलझे पर हम मगर,
दुश्मनों के लिए तो आग हैं हम!!

प्यार से यदि कोई पिए हमें,
उनके लिए तो शहद हैं हम!
नफ़रत से हमे कोई पिए अगर,
उनके लिए तो ज़हर हैं हम!!

झुकते हैं हम उनके कदमों में ,
जो वतन पे प्राण गंवाते हैं  !
गोलियां बन जाते हैं हम उनके लिए ,
जो हमारी सीमा को आंख दिखाते हैं !!

                            मोहन श्रीवास्तव        
                             दिनांक -१५/०८/१९९९ ,रविवार,समय -शाम ६.२० बजे
                                     चंद्रपुर(महाराष्ट्र)

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