मेरा ऐसा कहा नसीब
कि सफ़लता रहे मेरे करीब
मै असफ़लता का ही दास
पर सफ़लता की लगाए आश
मै समझ न सका इसका भेद
हमे इस चीज का खेद
मै फ़सा इसी उलझन मे
कुछ आए ना समझ मे
मैने किसी का नही किया बुरा
फ़िर भी मेरे पीठ मे मारे लोग छुरा
मै करता हू किसी कि भलाई
यश के बदले मिलता है बुराई
मेरा कैसा ये घुटन भरा जिवन
जैसे रेत का लगाया हो उबटन
मै दिन-रात जलता रहता
सुखी रोटियो पर पलता रहता
मरे आसू नही नकलते
मेरे सिने बहुत है जलते
मुझे लगती बहुत है प्यास
मै आसू से बुझा लेता प्यास
ये निर्दयी जमाना
मेरा न सुने फ़साना
मुझे मौत भी न आती
ये जीवन हमे सताती
मै अपने आप से ही हारा
मेरा कोई नही सहारा
फ़िर भी मै सफ़लता कि लगाए आश
मेरे पुरे हो जब तक श्वाश..
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-५/५/१९९१ ,रविवार,
एन.टी.पी.सी. दादरी ,गाजियाबाद(उ.प्र.)
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