Monday 28 November 2011

तुमको है जब से देखा

तुमको है जब से देखा,मेरा दिल नही है लगता !
तेरी प्यारी-प्यारी सुरत ,लगता है चांद जैसा !!

नखरे तुम्हारे मुझको कैसे ये प्यारे लगते !
हम सोच -सोच करके हैं रात-रात जगते !!

तेरी ज़ुल्फ़ की हवाए, मदहोश कर रही है !
तेरी चाल से ये दुनिया कैसी ये डर रही है !!

तुम हो कली नई सी,गुलाबी तुम्हारी गाले !
मेरा जी चाहता है कैसे भे तुमको पालें !!

पतली कमर तुम्हारी ,लगती हो जैसे नागिन !
ये पलके जो तुम्हारे,लगते हैं रात और दिन !!

शिशे का तन है तेरा, और रंग है बदामी !
तेरी बोल कोयल जैसी,नशिली है ये जवानी !!

तेरे होठ सिपी जैसे,और दांत मोतियों का !
तेरे बाल रेशमी सी,और आखे हिरे जैसा !!

नाजुक तेरी कलाई,जैसे कमल का पौधा !
अनमोल तेरी काया,जिसका नही है सौदा !!

कश्मीर जैसी सुन्दर दिल है तेरा हिमालय !
नमकीन तेरा गुस्सा और खुशुबु फ़ूल जैसा !!

दुइज की चाद तेरा भौं,और सुरज मुखी सा चेहरा !
रहती हो परियों जैसी,जिसका कोई नही है डेरा !!

तिखे नाक-नक्शे वाली,तेरा कोई नही है उपमा !
गुड़िया हो मोम जैसी,बर्फ़िली कोई प्रतिमा !!

हम पिछे पड़े हैं तेरे हमको बना लो अपना!
बाहों मे मेरी आवो,मै देखूं तेरा सपना!!
तुमको है जब से देखा................

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -२६//१९९१ ,बॄहस्पतिवार ,रात , बजे,

एन.टी.पी,सी,दादरी ,गाजियाबाद (.प्र.)


2 comments:

Ramesh Kumar Choubey said...

Bahut Achha Laga

Mohan Srivastav poet said...

रमेश कुमार चौबे जी,

आपका दिल से आभार