मुझे इसने कैसे लूटा,मै किस तरह बताऊं ।
इसे देख-देख करके मेरा दिल जल रहा है ॥
मुझे इसने कैसे लूटा...........
मै तन से इसको चाहूं,ये मेरी बदनसिबी ।
मै नसीब वाला होता, तो ऐसा कैसे होता ॥
मुझे इसने................
मुझे इससे ऐसी नफ़रत,जिसे कह नही मै सकता ।
इसके पास जाते जाते,मेरा दिल है रोने लगता ॥
मुझे इसने..............
मैने जब कभी भी सोचा,मुझे रास्ता न मिलता ।
मेरे आंसू नही निकलते,अन्दर ही जलते रहते ॥
मुझे इसने.............
मैने जिसको-जिसको चाहा,वो मुझे नही है मिलता ।
थी मेरी कुछ तमन्ना,जिसे पाके मै भी खिलता ॥
पर खुदा है मुझसे रुठा ,मै किस तरह बताऊं
मुझे इसने................
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१३/९/१९९१,
शाम ८.१० बजे,शुक्रवार,
एन.टी.पी.सी.दादरी ,गाजियाबाद (उ.प्र.)
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