खोई कहा हो माता मेरी,आए तेरे द्वारे!
एक दुखी की विनती सुन लो, कब से तुम्हे पुकारे!!
एक बहुत दुखियारी पर मा, कर दो कॄपा घनेरी!
रुठी हो क्या माता मेरी,इस लिए करती देरी !!
इतने दिनो से मइया मेरी. जी रहे तेरे सहारे!
मेरा कोई नही है माता,हम सबसे हारे!!
तू ही गंगा,तु ही यमुना, राम -कॄष्ण तु काली!
पुरे कर दो मेरे मनोरथ .जय मा शेरा वाली!!
हे मा मेरे दुख को समझो, अब ना हसी करावो!
जगत जननी,जगदम्बे माता, नइया पार लगावो!!
तु सब हस -हस के सुनती रहती,काम न करती मेरा!
तेरे उपर गुस्सा आता,पर बस नही चलता मेरा!!
आज एक बालक की माता, सुन लो करुण पुकार!
विनती नही सुनोगी तो माता तेरा रहना है बेकार!!
खोई कह हो माता मेरी....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२२/७/१९९१ ,सोमवार,शाम,४.०५ बजे,
एन.टी.पी.सी. ,दादरी ,गाजियाबाद (उ.प्र.)
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