Sunday, 27 November 2011

बरसात मे सुबह के बादल



ये कितने सुहावने बादल
मुझे कर रहे है घायल
घेर रही है काली घटा,
सुबह की है अनोखी छटा
पानी बरस रहा है जोरो से
बादल गरज रहे है जोरो से
सावन की ये कैसी बहार
पड़ रही है ये रिमझिम फ़ुहार
मै कर रहा उसका ईंतजार
पर राह तकना है बेकार
फ़िर भी मै उसे पाने की आश
वो आएगी जरुर मेरे पास
वह भी होगी जहा
सोचती होगी ऐसे ही वहा
वर्षा से खुश हो रहे किषान
वे देखते कभी धरती-आसमान
बादल के सुन के शोर
वे खुश से होते सराबोर
उनको अपने ज्वार-बाजरे की बुआई
अभी करने है धान की रुपाई
सुबह-सुबह खिल रहे है फ़ूल
बच्चो को भी जाना है स्कूल
वे लगाए है पानी बन्द होने की आश
जल्दी पहुचु मै अपने क्लास
वर्षा से खुश होते वे
आज हो जाता रेनी डे
वे आपस मे करते बात
हम सब पानी मे खेलेगे आज
सब के दिल मे है उमंग
मै रहू बदलो के संग....

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-६/८/१९९१ ,मंगलवार ,सुबह ८.३५ बजे,
एन.टी.पी.सी.दादरी ,गाजियाबाद(उ.प्र.)

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