Monday, 19 February 2024

कजरी (सखी मंहगाई से सब क बुरा हाल बा)

सखी मंहगाई से, सब बुरा हाल बा,
जिया बेकरार, बा ना.....
सखी कहिअउ मे, दिल लजात बा,
जिया बेकरार बा.....
सखी मंहगाई से.....

सखी सबमे, लागल आग,
चाहे दूध या, हो भात..
या हो तेल या, हो साग,
चाहे कउनउ, अनाज..
सखी दाल-रोटी , खाब भी मोहाल बा..
जिया बेकरार, बा ना..
सखी मंहगाई से.....

चाहे कअनउ, तरकारी..
सबमे आग, लगल भारी....
चाहे लइकन , ड्रेस..
चाहे साड़ी या, हो सेज....
सखी कपड़न मे, आग लगा जात बा..
जिया बेकरार, बा ना..
सखी मंहगाई से.....

कइसे लइकन, हो पढ़ाई...
उनके एतना, कमाई...
कइसे जइअहि, स्कूल..
कहां से पइअहिं, कापी बूक..
सखि आपन पेट , काटि-काटि पढ़ात बा..
जिया बेकरार, बा ना..
सखी मंहगाई से.....

बिटिया होति, बा सयानी..
नाही कउनउ, आमदनी...
नाही कनउ, बैंक बैलेंस.
नाही तनिकउ बा कैश...
एकरा बिआहे चिन्ता, खात जात बा..
जिया बेकरार, बा ना..
सखी मंहगाई से.....

आवे वाला बा, त्योहार...
सोचिके फाटल जात बा, कपार..
घर मे कउनउ, ना समान...
का बनाइब, पकवान....
सखी मंहगाई से, कछुअउ सोहात बा...
जिया बेकरार, बा ना..
सखी मंहगाई से.....

सखी अइसन बा, देशवा हाल..
आगे जीनगी, मोहाल...
रहि-रहि मन मे उठे सवाल..
अउरउ आगे होई, बुरा हाल...
सखी आपन सोच से भी, आगे बुरा हाल बा..
जिया बेकरार, बा ना..
सखी मंहगाई से.....

सखी मंहगाई से, सब बुरा हाल बा,
जिया बेकरार, बा ना.....
सखी कहिअउ मे, दिल लजात बा,
जिया बेकरार बा.....
सखी मंहगाई से.....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
18-08-2013,sunday,7:30am,(728),
pune,maharashtra.





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