कोई कवि ने तो उपमा दिया आपको,
आपका तो कोई जवाब नही ।
इक झलक पा लेते हैं जो आपकी,
वे समझते हैं कहीं कोई ख्वाब तो नही ॥
मुखड़ा है आपका जैसे कोई गजल,
आखें जैसे हो शायरी कर रहे ।
भौहें तो हैं दोहे सी आपकी,
झुमके कानों के जैसे हों गजल पढ़ रहे ॥
नाक की नथिया तो आपका छंद सी,
वक्ष कविता जैसे हैं लग रहे ।
है कमर आपका सोरठा सा कोई,
हाथों की चूड़ीयां गीत हों गा रहे ॥
पायल पावों के ऐसे सवइया कोई,
मुक्तक तो लग रहा नाभी आपका ।
होठ जैसे कोई श्लोक हों पढ़ रहे,
केश कोई भजन सा है आपका ॥
चीर है तो वदन पे कोई गद्य सा,
चाल तो पद्य सा कोई लग रहा ।
आपके चाहने वाले अलंकार से,
समास जैसे तो वाह-वाह सब कर रहा ॥
कवि मोहन ने उपमा दिया आपको,
आपका तो कोई जवाब नही ।
इक झलक पा लेते हैं जो आपकी,
वे समझते हैं कहीं कोई ख्वाब तो नही ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
11-10-2013,friday,3:00pm,(768),
pune,m.h.
No comments:
Post a Comment