भगवान की ये कैसी पूजा,
जहां जानवरों की बलि है दी जाती ।
उनके बहाने उन सबकी,
क्षुधा-तृप्ति है हो जाती ॥
अपनी खुशियों के लिये हम,
निर्दोषों की बलि को देते ।
ऊपर वाला खुश होगा हमसे,
उन मासूमों को कत्ल हम कर देते ॥
ईश्वर ने बनाया हम सबको,
हम सब उसकी संतान हैं ।
उनको बनाया है पशु-पक्षी,
तो हमको बनाया ईन्षान है ॥
अपने जीवन जैसा ही,
उन्हें उनका भी जीवन प्यारा है ।
हम मानव रूप मे हो रहे हैं प्रसन्न,
तो उन्हें उनका ही रूप तो प्यारा है ॥
मत मारो निर्दोषों को,
नहीं तो उनका बद्दुआ तो मिलेगा ही ।
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ही,
हमे इसकी सजा तो मिलेगा ही ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
11-10-2013,friday,9:00am,(767),
pune,m.h.
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