Monday, 19 February 2024

तेरे हुश्न से छलकती हुई मदिरा को

तेरे हुश्न से छलकती हुई मदिरा को,
मै नयनो. से पीता जाऊं !
तेरे तन के दहकते अंगारे से,
मै सूरज की गर्मी पाऊं !!

खुशबू सी भरी हुई श्वाशों मे,
मै तो बस डूबा जाऊं !
मुस्कान कमल के फ़ूलों की,
मै भवंरे की तरह ही समा जाऊं !!

जुल्फ़ों के तेरे साए मे,
गीत मिलन के मै गाऊं !
तेरी तेजी से धड़कते -धड़कन से,
मै तो पागल सा हो जाऊं !!

तेरी चुलबुल सी भरी इन अदावों से,
मै तो बेचैन सा हो जाऊं !
बाहों का हार पहना के तुम्हें,
मै सुख चैन से भर जाऊं !!

नयनों से कभी ना होना  ओझल,
हर-पल मै तुम्हे निहारता जाऊं !
इन आती-जाती श्वाशों मे,
मै दिल से तुम्हे पुकारता जाऊं !!

तेरे हुश्न से छलकती हुई मदिरा को.......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचनांकन दिनांक-२८/११/२०००, मंगलवार,सुबह-.२५,
नागपुर रे. स्टेसन(महाराष्ट्र)




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