हर दिल मे डर है भरा हुआ,
आखों में दिखती दहशत है ।
बढते हुये अत्याचारों से,
जन-जन देखो आतंकित है ॥
बलात्कार हो रहा मासूमों पर,
और धज्जियां उड़ रही कानूनों की ।
महंगाई का कफन जिन्दा हम पर,
और जय-जय कार हो रहा बेईमानों की ॥
बेटियों की शादी की चिंता,
और दहेज की आग में जलती बहुएं ।
रोजगार को तरसते नौ-जवान,
जिनके अरमान सब चकनाचूर हुए॥
मौत मांगती बूढ़ी आखें,
जिनके बेटों ने मुंह मोड़ लिया ।
दौलत से प्यार हो गया है उनको,
उन्होंने मित्रता से नाता तोड़ लिया ॥
चोरी,डाका,लूट-पाट,
अपहरण की बढ़ती घटनाएं ।
ईंषान का जीवन बकरा जैसा,
कोई कैसे रह पाए...
ईंषान का जीवन बकरा जैसा,
कोई कैसे रह पाए...
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
11-06-2001,monday,08:30am,(496),
thoppur,dharmapuri,tamilnadu.
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