कभी अपना भी तो था इक गुलशन,
जिसमे सब साथ-साथ रहते थे ।
कभी सुख-दुःख जो भी आता था,
हम तो हंस करके उसको सहते थे ॥
कभी जीनें की चाह होती थी,
कोई आंसू न गम का था उसमे ।
हर जगह प्यार की तो ज्योति थी,
कहीं बुझता दिया न था उसमें ॥
हम तो खुश थे वो प्यारे गुलशन में,
कोई तूफान तो वहां आया ।
अपनी धूलों भरी वो दुनिया में,
हमको उसने यहां उड़ा लाया ॥
हम तो जाके कहीं गिरे ऐसे,
जहां वापस तो आना मुश्किल था ।
हमको जीने की चाह हो कैसे,
वहां मरना भी कितना मुश्किल था ॥
ये तो कैसा नसीब का खेला,
जो कि अपने पराए हो जाते ।
कभी हंसते हुए इन आखों में,
दुःख के है आंसू आ जाते ॥
कभी अपना भी तो था इक गुलशन,
जिसमे सब साथ-साथ रहते थे ।
कभी सुख-दुःख जो भी आता था,
हम तो हंस करके उसको सहते थे ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
05-06-2001,tudsday,(493),
thoppur,dharmapuri,tamilnadu.
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