यह कैसी काली
अंधियारी रात,
मेघों की,
सिंह गर्जना,
दामिनी की,
तीब्र चमक और
तूफ़ान कर रहा बज़्राघात,
साथ मे बारिस
का आगमन
तर-तर हो गया
मेरा बदन,
ऐसे मे काश!
तुम पास मे होते,
तो हम अपनी
किस्मत मे न रोते,
जलती हुई
ज्वाला पर,
इन बारिस की ,
ठंडी थपेड़ों का प्रहार,
माध्यम बन गई है
बूंदे उन्हे मिलाने का,
और बातें कर रहे
धरा व आकाश!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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१३/५/१९९९,मंगलवार,रात्रि ११ बजे,
चन्द्रपुर महा.
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