आप हिम्मत नही हारिए, हमसफ़र,
हार को अपने दिल से हटा दिजिए !
कैसा भी वक्त आए घबराइगा नही,
अपने मायुशी को चेहरे से मिटा दिजिए !!
रोते हैं कायरों की तरह आप क्युं,
वीरों की भाति दामन उठा लिजिए !
शिकवा-शिकायत का ये अवसर नही,
आप नजरें जमी से उठा लिजिए !!
रुठिएगा नही आप हमसे सनम,
रूठेंगे आप तो हम किधर जाएंगे !
मोती हैं आप के हार के हम सभी,
टुटेंगे आप तो हम बिखर जाएंगे !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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१४/५/१९९९,शुक्रवार,सुबह ११ बजे,
चन्द्रपुर महा.
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