Monday, 19 February 2024

हादशा हो गया ये कैसे

मुर्झा से गये हैं ये गुलशन,
हरियाली मे पतझड़ आ है गया ।
आखों के बीच अंधेरा है,
और दुःख का बादल छा है गया ॥

सब खुश थे अपने खयालों में,
किसी अनहोनी की थी खबर नहीं ।
खुशी पल में गम मे बदल गया,
कोई कहीं था तो कोई और कहीं ॥

सपने सब सब है बिखर गये,
कोई रेत की दीवारों की तरह ।
मातम का आलम छा है गया,
किसी उजड़े हुये बाजारों की तरह ॥

कोई रोता है,कोई बिलखता है,
कोई आता है और कोई जाता है ।
हादशा हो गया ये कैसे,
कोई कुछ समझ न पाता है ॥

यह कुदरत का कैसा करिश्मा है,
कि गुलशन श्मशान मे बदल जाता ।
कभी उजड़े हुये चमन में फिर से,
देखो बहार है आ जाता ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
17-05-2001,thursday,10:10am,(487),

thoppur,dharmapuri,tamilnadu. 

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