कहां चले गये हमे छोड़ के साजन,
तुम्हारी याद बहुत ही सताती है ।
तुम्हारा प्यार से वो बातें करना,
हमे रह-रह के बहुत रुलाती है ॥
हर जगह जहां मै रहती थी,
मेरा साया बनके साथ रहे ।
जब कभी तेज लगती थी धूप,
मेरा छाया बन के साथ रहे ॥
वे जीवन के पल थे कितने अच्छे,
जहां हम दोनो का अलग संसार था ।
सहते थे सुख-दुख साथ सदा,
वहां खुशियां और बस प्यार ही था ॥
हर तूफानों से बचाते थे तब तुम,
नही बुझने देते थे अपना दिया ।
मै रोशनी थी तुम्हारी राहों की,
जब रात अंधेरी होती थी पिया ॥
कहां चले गये हमे छोड़ के साजन,
तुम्हारी याद बहुत ही सताती है ।
तुम्हारा प्यार से वो बातें करना,
हमे रह-रह के बहुत रुलाती है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
२०-४-२०१२-३,शनिवार,शाम ५ बजे,
पुणे,महा.
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