तेरी हालत पे मुझे, आज तरस आता है !
मेरे मन मे ,अजीब सा सन्नाटा है !!
तेरी हालत पे...................
तुम कली ऐसी हो, जिसे खिलने का मौका न मिला !
तुम्हे खिलने से ही पहले ,किसी ने तोड़ लिया !!
तेरी हालत पे.................
तुम कली जब थी, तो लिपटी थे सब,भौरों की तरह !
अब तेरे पास, कोई नही आता है !!
तेरी हालत पे..................
तुममे खुशुबू थी जब तक,तेरे पिछे थे लोग !
अब तो मुह फ़ेर के ,लोग गुजर जाते है !!
तेरी हालत पे................
गुलदश्ते मे तुम, किसी की सजावट सी बनी !
तुम जो मुर्झा सी गई,जब, तो तुम्हे फ़ेंका है !!
तेरी हालत पे......................
तुम गुलाबी थी,हरी साड़ी मे कैसी लिपटी !
अब दोनो ही ये, फ़िका नजर आता है !!
तेरी हालत पे................
तुमने सोचा भी न होगा, कि ऐसा होगा !
पर तुम्हे आज, समझ मे आता होगा!!
तेरी हालत पे......................
फ़िर भी अपने को संभालो,तुम बुझदिल न बनो !
तेरे अरमान हैं जो, वो पूरे होंगे !!
तेरी हालत पे.........................
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१२/१०/१९९१ ,शनिवार,शाम-७.२० बजे,
एन.टी.पी.सी.दादरी,गाजियाबाद (उ.प्र.)
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