ये दुनिया है कैसी ,
जहा रोग ही रोग लगे !
इक रोग खतम हो तो,
दूजा और रोग लगे !!
कहीं ईश्क का रोग, कहीं प्यार का रोग,
कहीं भोग का रोग लगे !
कहीं दृष्टि का रोग,कहीं ज्वर का रोग,
कहीं योग का रोग लगे !!
कहीं मान का रोग,कहि अभिमान का रोग,
कहीं ध्यान का रोग लगे !
कही आन का रोग,कहीं ध्यान का रोग,
कहीं ग्यान का रोग लगे !!
कहीं भक्ति का रोग,कहीं शक्ति का रोग,
कहीं संतान का रोग लगे !
कहीं युक्ति का रोग,कहीं मुक्ति का रोग,
कही सम्मान का रोग लगे !!
कहीं सुख का रोग ,कहीं दुख का रोग,
कहीं धन का रोग लगे !
कहीं मुख का रोग,कही भूख का रोग,
कहीं मन का रोग लगे !!
कहीं भूत का रोग,कहीं प्रेत का रोग,
कहीं शक का रोग लगे !
कहीं सूद का रोग,कहीं क्रोध का रोग,
कहीं कर्ज का रोग लगे !!
ये दुनिया है कैसी,
जहा रोग ही रोग लगे !
इक रोग खतम हो तो,
दूजा और रोग लगे !!....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२४/१०/२००० ,मंगलवार-दोपहर-३.३० बजे
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
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