कब से ये जल रही मेरी दुनिया,सोते रहते हो कुछ पता है
नही !
किसने आग ये लगाई है , पूछती हूं ,तो, कुछ बताते नही !!
कब से ये जल रही दुनिया...............
धीरे -धीरे जब ये सुलगता था ,मैने कई बार ही कहा तुमसे
!
तब तुम हस -हस के टाल देते थे, जब भी मैने कभी कहा तुमसे
!!
कब से ये जल..............
देखो कैसे ये जल रहा है जरा, मेरे अरमानों का, वो शीशमहल !
इसे चुन-चुन कर मै बनाई थी ,देखो ,कैसे आज रहा है वो जल !!
कब से ये जल...............
दो दिलों की दिवार थी उसमे
,प्यार भरी बातों की रोशन
दाने !
उसकी खुशियो के सुन्दर छत
के तले ,उसमे रहते थे दो दिवाने
!!
कब से ये जल ..............
उसमे सपनों का बाग था
अपना ,प्यार के आसुवों से सिंचे
थे !
नर्म बाहों की थी जमी
उसमे ,रेशमी जुल्फ़ो के गलीचे
थे !!
कब से ये जल रही.................
होठों जैसे थे उसमे दरवाजे
,जो कभी खुलते -बन्द होते थे !
मुस्कराहट की सेज थी उसमे
,जिसपे दोनों दिवाने सोते
थे !!
कब से ये जल..............
गम का चिराग था उसमे
,जो कभी धुआं देके जलता
था !
जब कभी दोनो दिल बिछुड़ते
थे ,उस समय ही वो ऐसा करता
था !!
कब से ये जल.....................
पूरा जलना इसे तो जल जाए,पर अधुरा ये जलना ठीक नही!
ये तड़प -तड़प के मोहन क्या जीना,इससे मर जाना ठीक ही है
सही!!
कब से ये जल रही मेरी दुनिया...............
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -१४/१२/१९९१ ,शनिवार ,सुबह ७.३५ ,बजे,
तुकुम ,चन्द्रपुर (माहाराष्ट्र)
No comments:
Post a Comment