आवो जलाए रावण हम उनकी,
मंहगाई और भ्रष्टाचार की !
जो लूट रहे है देश को अपने,
उन पापियों के अत्याचार की
!!
आवो जलाएं रावण हम,
उन दहेज लोभी ईन्षानों की !
जो उन मासूमों को जिन्दा जलाते,
ऐसे पत्थर दिल हैवानों की !!
आवो जलाएं रावण हम उनकी ,
जो आपस मे हमको बाट रहे !
नफ़रत का जहर उगाकर जो,
हमारे खून को चाट रहे !!
आवो जलाएं रावण हम उनकी,
उन मिलावटी दुकानदारों की !
जो मिलावटी चिजे हैं बेचते,
ऐसे सफ़ेदपोश सौदागरों की !!
आवो जलाएं रावण हम उनकी,
उन रिश्वतखोर बेइमानोंकी !
जो गुप-चुप रिश्वत ले लेते,
ऐसे रिश्वत के दिवानों की !!
आवो जलाएं रावण हम उनकी,
उन पापी बलात्कारियों की ।
जो अबलावों की ईज्जत लूट रहे,
ऐसे दुष्ट मक्कारों की ॥
पर रावण को जलाने के पहले,
हमें हमारे अन्दर के रावण को मारना होगा ।
रावण के दुराचरण को हमे त्यागकर,
हमको भी राम बनना होगा ॥
रावण के दुराचरण को हमे त्यागकर,
हमको भी राम बनना होगा
......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
13-10-2013,sunday,9:30am,(769),
pune,maharashtra.
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