सिर का बोझ सह लेते हैं सब,
पर दिल का बोझ नही सहा जाता ।
इस घुटन भरी मंहगाई मे,
लोगों से नहीं रहा जाता ॥
जहां दर्द मिलता हो अपनों से,
वहां इक पल भी नहीं रहा जाये ।
सह सकते हैं गोली का मार सभी,
पर बोली का मार नहीं सहा जाये ॥
जब दिल यदि लगा किसी बदसुरत से,
तो परी की याद कहां आये ।
जब मन भंवरा हो जाये तो,
पत्नी की याद कहां आये ॥
जब मित्रता मे छल की बू आये,
तो मित्रता कहां से रह पाये ।
जहां घात का डर हो अपनों से,
वहां कैसे सुरक्षित रहा जाये ॥
जब प्यार मे तड़पते हों दो दिल,
तो सुख-चैन कहां से रह पाये ।
जब बिछुड़े हुए दो दिल मिल जायें,
तो बीते दिनों की याद कहां आये ॥
जब बिछुड़े हुए दो दिल मिल जायें,
तो बीते दिनों की याद कहां आये.....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
07-03-2001,3:20pm,(470),
thoppur,dharmapuri.tamilnadu.
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