वाह क्या हुश्न है आपका ऐ नाजुक परी,
लग रहा चाँद गगन से धरा पर आ गया ।
हर अदा आपका तो बेमिशाल है,
लग रहा इश्क पे हुश्न है छा गया ॥
हिरनी जैसी कोई आपकी आंख है,
चाल नागिन सी कोई है लग रही ।
होठों का रंग आपका तो गुलाबी लिये,
पायल पावों की छन-छन तो बज रही ॥
केश काले घने बादलों की तरह,
वक्ष आशिकों पे तो बजली गिरा हैं रहे ।
पल्लू से झांकते आपके नाभी से,
धड़कनें आशिकों के बढे़ जा रहे ॥
हाथों में खन-खनाती हुई चूड़ियां,
लग रहा जैसे हों शायरी कर रहे ।
कानों के झुमके जैसे कोई जोड़ियां,
आपके मुखड़े की डायरी पढ़ रहे ॥
गले मे हार तो आपके ऐसा है,
जैसे ईन्द्रधनुष सा गगन मे नजारा कोई ।
तन पे पहना हुआ कस के चोली आपने,
मानों मतवाला प्रेमी जोड़ा हो कोई ॥
आपके तन की निकलती खुश्बू से,
गुलशन मे बहार देखो आ जाता है ।
आपके रस को पीने की चाहत मे तो,
भंवरो का कतार देखो चला आता है ॥
वाह क्या हुश्न है आपका ऐ नाजुक परी,
लग रहा चाँद गगन से धरा पर आ गया ।
हर अदा आपका तो बेमिशाल है,
लग रहा इश्क पे हुश्न है छा गया ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
19-10-2013,sataurday,night
1:00am,(772),
pune,maharashtra.
.jpg)
No comments:
Post a Comment