है परी कोई आई गगन से आप हैं,
देखने की तो चाहत बढ़ी जा रही ।
जितनी भी देर ठहरी यहां आप हैं,
भीड़ आशिकों की तो देखो चली आ रही ॥
है परी कोई आई.....
मुखड़े की नूर तो इस जहां मे नहीं,
चाँद मे दाग भी तो नजर आ रहा ।
खुबसुरत अदावों की आप हो मल्लिका,
आपका हुश्न तो है गजब ढा रहा ॥
है परी कोई आई.....
रंग बिजली सी कोई लिये आप हो,
आपको देखकर तो नशा छा रहा ।
आपकी हर अदा पे मदहोश हो,
कहीं कोई गिरा और, कहीं कोई गिर रहा ॥
है परी कोई आई.....
मरते आशिक मे भी जान आ जाता है,
आपको देखता है जब भी कोई ।
धड़कनें दिल की तेज हो जाती हैं,
प्यार से देखता है जो भी कोई ॥
है परी कोई आई.....
मूरत हो आप दिल से तरासी गई,
प्यार ही प्यार अंग मे नजर आ रहा ।
जो भी देखे हैं रूप के आपको,
वो आपके रूप को तो है पढ़ रहा ॥
है परी कोई आई गगन से आप हैं,
देखने की तो चाहत बढ़ी जा रही ।
जितनी भी देर ठहरी यहां आप हैं,
भीड़ आशिकों की तो देखो चली आ रही ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
14-10-2013,monday,midnight
1:00am,(770),
pune,maharashtra.
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