जब तुम्हें देखे कोई तिरिछे नजरों से,
तो मन मेरा जल उठता है ।
जब हंसी के कहीं फौव्वारे हों,
तो हृदय में शूल चुभ उठता है ॥
तू पत्थर थी कभी कोई,
तुम्हें मूरत मे तरासा है मैने ।
तु झाड़ियों के बीच छिपी थी कहीं,
तुम्हें गुलशन मे लाया है मैने ॥
बचपन से लेकर जवानी तक.
साया बनकरके रहा हूं मैं ।
लोगों की तिखी बातों को,
तेरे लिये सहा हूं मैं ॥
जींदगी बिताने की रश्में,
हमने साथ निभाई है ।
इक साथ ही जीने-मरने की,
कसमें हमने खाई है ॥
तुम्हें फूल से भी नाजुक समझ करके,
तुम्हें अपने दिल मे बसाया है ।
बाहों का हार सदा मैने,
गले मे तेरे पहनाया है ॥
अब तू बन गई इस काबिल हो,
कि तुझे पाने की आश सब करते हैं ।
पर शायद उनको पता नहीं,कि,
हम इक-दूजे के दिलों में रहते हैं ॥
पर शायद उनको पता नहीं,कि,
हम इक-दूजे के दिलों में रहते हैं....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
01-03-2001,thursday,4:00pm,(468),
in
keralaa expss.train,between,
selam
jn to ballarsha jn.

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