रिमझिम बरसे रे बदरिया,
मोर आये ना संवरिया
अब तो पिया बिन रहा नही जाये ।
देखो मगन है सब गोरिया
जिनके साथ मे संवरिया
मोको ताना देके कैसे वो चिढ़ाये ॥
रिमझिम बरसे रे बदरिया....
देखो उमड़-घुमड़ के बरसे बदरवा
मोर भीगे रे चुंदरी,भीगे अंचरवा
पापी बूंद ये मोको जलाये ।
सर-सर ठंडी चले हवा
मोर पिया हैं बिदेशवा
मोहे बिरहा को पागल ये बनाये ॥
रिमझिम बरसे रे बदरिया....
दिन तो कैसे हम गुजारे
रैना काटी नही जाये
मेरे नयनों से नींद उड़ाये ।
रहि-रहि बिजली सी चमके
मैं तो रहूं डर-डर के
ये मेरे धड़कन दिल की बढ़ाये ॥
रिमझिम बरसे रे बदरिया....
अब तो आ जा पिया परदेशिया
मैं तो हो गई रे बवरिया
सावन रहि-रहि के मोहे तड़पाये ।
लागे तन मे अगन
मैं अब का करूं जतन
अब दिन ये बीते
ना बिताये ॥
रिमझिम बरसे रे बदरिया
मोर आये ना संवरिया
अब तो पिया बिन रहा नही जाये ।
देखो मगन है सब गोरिया
जिनके साथ मे संवरिया
मोको ताना देके कैसे वो चिढ़ाये ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
28-08-2000,monday,7:45pm,(380),
chandrapur,maharashtra.
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