उठो विदर्भ के अमर सपूतों,
अपने विदर्भ को राज्य बनाने की ।
अब और उपेक्षा बर्दास्त नही,
तैयार हो इन अंधे-बहरों को समझाने को ॥
अपनी हुकूमत चला करके,
ये हमारे प्यारे विदर्भ को लूट रहे हैं ।
सीधे-सादे हम लोगों के,
ये खून मजे से चूस रहे हैं ॥
शांति की
बोली हम बोल रहे,
पर इन्हें सुनाई नही देता ।
क्रांति सदा पसंद है इन्हें,
इन्हें नमस्ते दिखाई नहीं देता ॥
एक कहावत है यारों,
कभी सीधे अंगुली से घी नहीं निकलता है ।
बिना संघर्ष के इस जमाने में,
अपना कोई भी हक नही मिलता है ॥
आलस्य-प्रमाद को दूर भगा,
आओ हम कुर्बानी देने को तैयार रहें ।
विदर्भ राज्य बना करके,
हम सबके सपने साकार करें ॥
मोहन श्रीवास्तव(कवि),
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
28-08-2000,monday,6:10pm,(379),
chandrapur,maharashtra.
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