विदर्भ वासियों नींद से जागो
अपने सपने साकार करो ।
मांगो तो हक से मांगो,
हमारा विदर्भ राज्य स्वीकार करो ॥
आओ आपसी मतभेद भुलाकर,
सब जन हम प्रण-पान करें ।
विदर्भ राज्य जल्द बने हमारा,
यह अपने दिल में ध्यान धरें ॥
जनशक्ति में अपरिमित बल है,
ये जो चाहे वो कर सकते हैं ।
बस पृथक विदर्भ की बात ही क्या,
ये और बहुत कुछ कर सकते हैं ॥
कल तक जो इसके बिरोधी थे,
वे आज हमारे साथ में हैं ।
इससे जादा खुशी और क्या होगा,
हमारे साथ मे करोणों हाथ भी है ॥
आगे बढ़ने वाले हमारे कदम,
अब इन्हें पीछे मोड़ना ठीक नही ।
खुशियों से भरा हो विदर्भ हमारा,
इसे औरों में जोड़ना ठीक नहीं ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि),
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
26-08-2000,sunday,11:55pm,(376),
chandrapur,maharashtra.
No comments:
Post a Comment